कभी पासवान परिवार का गढ़ कहा जाने वाला वाला खगड़िया का अलौली विधानसभा पासवान परिवार को लेकर सुर्खियों में है। इसबार किसी विरोधी को लेकर नहीं बल्कि परिवार की तख्ती के कारण अलौली का नाम देशभर में छाया है। विगत दिनों से अलौली का शहरबन्नी पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस और उनके भतीजे केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के लिए चर्चा में है। दरअसल, चाचा और भतीजे के बीच वर्षों पनपी तख्ती अब खुलकर परिवारिक लड़ाई में तब्दील हो चुकी है। जहां दोनो एक दूसरे पर तीखा हमला कर रहे हैं। ऐसे में चर्चा है कि क्या खगड़िया जिले का अलौली विधानसभा से केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार की राजनीति में आयेंगे ? हालांकि यह अभी तय नहीं है, लेकिन चिराग पासवान को करीब से जानने वालों की माने तो वे बिहार की राजनीति में अपना पैर अपने पैतृक सीट से रखना चाहते हैं। हालांकि एक चर्चा यह भी है कि चिराग की बहन भी उनकी पार्टी से उम्मीदवार हो सकती है। आइए जानते हैं अलौली विधानसभा का इतिहास…………!
साख की रणभूमि बनेगा अलौली
इन सवालों का जबाव भी बहुत आसान है। अलौली केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान के पिता पूर्व लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान की जन्म भूमि है। जहां से उन्होंने खुद देश की राजनीति में रहकर अपने दोनो छोटे भाई पशुपति कुमार पारस और रामचन्द्र पासवान को राजनीति में खड़ा किया। लेकिन अब पासवान परिवार के बीच तख्ती इतनी बढ़ चुकी है कि शहरबन्नी गांव राजनीति का केन्द्र बन चुका है।
रामविलाश के कीले को नीतीश ने किया समाप्त
खगड़िया जिले का अलौली विधानसभा सीट को एलजेपी यानि रामविलास पासवान का गढ़ माना जाता था। दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के इर्द गिर्द ही अलौली की राजनीति का हवा चलती थी। लेकिन नीतीश कुमार ने उनके किले को सर्वप्रथम भेद दिया था। रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस इस सीट से 7 बार विधायक चुने गए। अलौली विधानसभा को पासवान परिवार का गढ़ इसलिए कहा जाता था कि यहां से सात बार रामविलास पासवान ने अपने भाई को अपने बलबूते बिहार विधानसभा पहुंचाया था। हालांकि की पासवान परिवार का यह बर्चस्व ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। वर्ष 2010 में उनका किला मुख्यमंत्री नीतीश की पार्टी जदयू ने ढ़ाह दिया।
पासवान परिवार की गढ़ को लालू ने भी भेदा
अलौली विधानसभा को रामविलास पासवान का गढ़ इसलिये कहा जाने लगा था क्योंकि यहां से वे एकबार विधायक बने और उनके मंझले भाई पशुपति कुमार पारस सात बार विधायक का चुना जीते। ये वो समय था जब अलौली में पासवान परिवार की तूती बोलती थी। वर्ष 2015 में इस विधानसभा सीट पर लालू की पार्टी से एक दलित को उम्मीदवार बनाया गया। जिस चुनाव में आरजेडी प्रत्याशी चंदन कुमार राम ने रामविलाश पासवान की कीले को ऐसा भेदा कि उनके सात बार रहे विधायक भाई पशुपति कुमार पारस को 24470 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
चाचा भतीजे होंगे आमने-सामने
अलौली विधानसभा इसलिये बिहार का हॉट सीट माना जा रहा है। यहां एनडीए के लिए कई मुश्किलें हो सकती हैं। इस सीट पर चाचा और भतीजे आमने सामने हो सकते हैं। पारिवारिक सूत्रों की माने तो एक तरफ पूर्व केद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस अपने बेटे यश राज को राजनीति के अखाड़े में लाने को लेकर तमाम प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्व केद्रीय मंत्री के बेटे और पशुपति कुमार पारस के भतीजे चिराग पासवान अपने इस सुरक्षित सीट को अपने खेमे में करना चाह रहे हैं। जिस तरह से दोनो चाचा भतीजे में नोक झोंक दिख रहा है उससे यह कहा जा सकता है कि छह माह बाद बिहार विधानसभा चुनाव में दोनो चाचा भतीजा आमने सामने होंगे।
पांच वर्ष पहले पार्टी में हुई थी टूट
चिराग पासवान ने अपने पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद यह समझा था कि उनकी पार्टी को उनके परिवार के लोग मिलकर चलाएंगे। लेकिन यह सोच उस समय बदलता नजर आया जब 8 अक्टूबर 2020 को लोजपा सुप्रिमों रामविलास पासवान की मौत हो गई। इस घटना के बाद चिराग ने यह नहीं सोचा था कि उसके परिवार के लोग ही उसको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देंगे। इस दौरान दिवंगत नेता रामविलास पासवान के छोटे भाई और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस ने 5 सांसदों को साथ लेकर पार्टी पर अपना अधिकार जता दिया था। यह वो समय था जब चिराग अलग-थलग पड़ गए। बीजेपी ने भी चिराग का साथ छोड़ दिया था। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में चिराग पासवान एनडीए में शामिल हुए। उनके पांच सांसद बने।
कब किसको मिली अलौली सीट
2020- आरजेडी
2015- आरजेडी
2010- जेडीयू
2005- एलजेपी
2000- जनता दल (यूनाइटेड)
1995- जनता दल
1990- जनता दल
1985- लोक क्रांति दल
1980- जनता पार्टी
1977- जनता पार्टी
1972- कांग्रेस
1969- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1967- कांग्रेस
1962- कांग्रेस