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खगड़िया से सीखने को बहुत कुछ मिला, आज छोड़ते हुए मन बोझिल है, वो जानी पहचानी सड़कें, पुल पुलिया वो इमारतें वो गाँव कहीं दूर पीछे छूटते चले जा रहे हैं, रह गई हैं तो अब खगड़िया की बहुत सी खट्टी मीठी यादें : डॉक्टर आलोक रंजन घोष

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आज खगड़िया से आखिरकार मेरा प्रस्थान हो ही गया। स्थानांतरण आदेश आते ही मिश्रित अनुभूतियों से भरे संदेशों की जैसे झड़ी सी लग गई।
कई संदेश, वीडियो देख कर, सुन कर , पढ़ कर जहां एक ओर मैं भावुक हो गया वहीँ दूसरी ओर आत्मसंतुष्टि भी हुई । शायद मैंने कभी सोचा न था कि इतना स्नेह यहां के नागरिक मुझे देंगे। जो चीजें अनायास ही हमने कीं, ना जाने इतनी बारीकी से लोगों से कैसे उसका मूल्यांकन किया और बधाई दी, श्रेय दिया जिसका मैं अकेला ही हकदार नहीं था।
विगत तीन वर्षों में अच्छी टीम के साथ काम करने का अवसर मिला। आज उनमे से कई लोग खगड़िया से स्थानांतरित हो चुके हैं और कई सेवानिवृत भी पर इस अवसर पर मैं उन सबके प्रति आभार व्यक्त किए बिना ये संदेश अधूरा ही रहेगा।
चाहे विषय आपदा का हो या चुनाव का या हो किसी कार्यक्रम को आयोजित ही करने की बात का, हमारी टीम ने निहायत ही अच्छा कार्य करने का प्रयास किया। जैसे हाथ की पांचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती उसी प्रकार हर किसी भी टीम के सदस्यों के द्वारा भले ही एक सा योगदान ना भी दिया गया हो तब भी सबका योगदान मह्त्वपूर्ण है।
खगड़िया से सीखने को बहुत कुछ मिला जैसे अपने अथक प्रयासों पर विश्वास करना, आपदा के बाद भी और बेहतर तरीके से उबरना, सीमित संसाधन में बेहतर करने का प्रयास और मुख्य तौर पर अपनी टीम पर भरोसा करना।
आज खगड़िया छोड़ते हुए मन बोझिल है। वो जानी पहचानी सड़कें, पुल पुलिया वो इमारतें वो गाँव कहीं दूर पीछे छूटते चले जा रहे हैं । रह गई हैं तो अब खगड़िया की बहुत सी खट्टी मीठी यादें, एवं आप सब से मिला हुआ असीम स्नेह। लिए जा रहा हूं सब अपने साथ।
आप सबों की मंगल कामनाओं के साथ।
अलविदा खगड़िया! फिर मिलेंगे।
आलोक रंजन घोष
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