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संसद में संप्रभुता और शक्ति के ऐतिहासिक प्रतीक के स्थापन से क्यों बौखलाया है विपक्ष, संसद भवन में सेंगोल की स्थापना भारतीय संस्कृति के महत्व का है प्रमाण

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अभिजीत सिन्हा

भारत के नई संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा संप्रभुता और शक्ति के प्रतीक कहे जाने वाले सेंगोल को लोकसभा में स्थापित किया गया है। जो भारत में भारतीय संस्कृति और इसके महत्व को दर्शा रहा है। जबकि इसको लेकर पूरा विपक्ष भारत सरकार खास रूप से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हो चला है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भारत की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां देश के सांस्कृतिक महत्व से भी राजनीति पर आमदा है। सेंगोल मूल रूप से चोल राजाओं द्वारा उनकी शक्ति और अधिकार को इंगित करने के लिए शाही प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया था। ऐसा माना जाता है कि यह संस्कृत शब्द ‘संकल्पम’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘दृढ़ संकल्प’ या ‘संकल्प’।

अंग्रेजों ने नेहरू को सेंगोल सौंप सत्ता का किया हस्तांतरण

बीते 28 मई 2023 को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने विधिवत पूजा अर्चना कर नए संसद भवन का उद्घाटन किया। लेकिन सबसे ख़ास बात यह है कि नए संसद भवन को भारत की प्राचीन परंपरा से जोड़ा गया, आजादी के बाद भुला दिए गए ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया गया। मंत्रोच्चारण, पूजन अर्चन के बाद Sengol को तमिलनाडु के मठों से आए अधीनम ने प्रधानमंत्री को सौंपा और पीएम ने इसे लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के बाजू में स्थापित किया। बता दें कि आजादी के बाद जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से पूछा गया था कि वो सत्ता हस्तांतरण के समय क्या आयोजन चाहते हैं तो उन्होंने अपने सहयोगी सी-गोपीचारी की सलाह पर तमिलनाडु से सेंगोल मंगवाया था। जो 14 अगस्त 1947 की रात अंग्रेजों ने पीएम नेहरू को सेंगोल सौंपकर ही सत्ता का हस्तांतरण किया था।

सेंगोल का सांस्कृतिक महत्व क्या

सेंगोल का बहुत सांस्कृतिक महत्व है और इसे गर्व और विरासत का प्रतीक माना जाता है। इसका उपयोग अक्सर धार्मिक समारोहों, सांस्कृतिक त्योहारों और राजनीतिक कार्यक्रमों में किया जाता है। यह प्रतीक कई प्राचीन मंदिरों, मूर्तियों और कलाकृतियों पर भी पाया जाता है, खासकर जो दक्षिण भारतीय संस्कृति में इसके महत्व की गवाही देते हैं। बताते चलें कि सेगोल संप्रभुता और शक्ति का प्रतीक है जिसका तमिलनाडु, भारत में बहुत सांस्कृतिक महत्व है। यह एक पारंपरिक शाही प्रतीक है जो चोल वंश का प्रतिनिधित्व करता है और सदियों से शक्ति और अधिकार को इंगित करने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। संगोल चोल मार्शल आर्ट परंपरा से भी जुड़ा हुआ है और दक्षिण भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। नए संसद भवन में संगोल की स्थापना भारतीय संस्कृति में इसके महत्व का प्रमाण है और यह भारत के गौरवशाली अतीत और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाता है।

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